बजी शहनायियाँ, तबले भी करने लगे थे शोर,
शादी का दिन था, थिरक रहे थे लोग |
खुश थे सब, आनंद से थे भोर विभोर ,
दुल्हन की सहेलियां नाचती थीं मनो मोर |
खुशियाँ ही खुशियाँ हर तरफ़ दिखती थीं चारों ओर,
सुख का माहौल था, दुःख का था न कोई ज़ोर |
माँ बाप ने सोचा आखिर उनकी मेहनत रंग लायी |
आज उनकी बेटी दुल्हन बनकर घर से लेगी विदाई |
सपना एक तो हुआ पूरा दूसरे की आस जताई |
किंतु यह क्या? गरीबी उनके बीच में आई |
वर पक्ष ने जो रखी मांग, असमर्थता जताई |
दुल्हन के दरवाजे से बारात लौट कर आई |
पल में सब खत्म हुआ, हो गए चूर सब सपने,
देखे थे जो ख्वाब, हो सके वो न अपने |
गरीबी पर था आक्रोश, किंतु बेगाने तो बेगाने,
हो कर भी जो न हो सके, उस ब्याह को कौन माने?
ऐसे समाज में जीने से तो मर जाना अच्छा,
जिस समाज में जान कर भी कोई न जाने |
थोड़ी देर पहले जिस लड़की को मिलने वाला था 'साथी',
उसी का 'साथ' न पाकर , दे दी अपनी आहुति |
खुशी का माहौल सारा मातम में बदला,
कौन सुनेगा री तुझे बावरी तू तो ठहरी अबला |
जाने कब तक छाया रहेगा अँधियारा, जाने कब होगी भोर |
इस दहेज़ की सेज पर एक मौत और, बस एक मौत और | |
10 comments:
abe aa to tu school m likhyo ho na? ba diary h ki thar kan bangalore m??
m bhi blog likh diyo hun mharo.. padh le :D
abe tu likhya bhi karto ho!!!!!!!
mast likhya kar h ho be...
abe yar mast likhyo be....gazab....aur tu aa kavita school m likhyo ho...[:o]..mast...
wow !!! finally tu phir se likhne laga ... school mein bhi achha likhta tha ... ho sake to ek do us time ki daal blog mein ...
haan be.. aur bhi bhor saari hi na.. likh de athe..
sahi hai...
Badiya likhta hai kshitiz.. :)
very nicely written, keep on writing...
nicely written...........:)
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