Monday, May 23, 2011

गर उसने हाँ कर दी होती....

Thanks to AD (Anu Didi), who convinced me to post it. :-) 

दिल की एक तन्हा धड़कन दूसरी धड़कन से कहती |
गर उसने हाँ कर दी होती, आज जिंदगी अलग ही होती ||

हाथ में मोबाइल ना होता, ना ही पीछे खिड़की होती | 
गुलाबी साड़ी में लिपटी, नजरें झुकी झुकी सी रहती |
सर पे बिंदी आँख में काजल, काले बाल संवारा करती |
ऐसे नज़ारे पे ये नज़रें बस उनको ही "निहारा" करती |
ये भी होता, वो भी होता, जाने क्या हद कर दी होती |
किन्तु यह सब तो तब होता, गर उसने हाँ कर दी होती || 

बूँद बूँद से गागर भरता, राहगीर प्यासा न रहता |
आवारा बादल नदियों की प्यास पर न्योछावर होता |
सब नदियाँ एक धारा बनकर सागर की हैं प्यास बुझाती |
दूर गगन नक्षत्र निवासी, होती काश 'क्षितिज' की प्यासी |
इस मरू भूमि पर भी ओंस की एक बूँद मुस्काती |
किन्तु यह सब तो तब होता गर वो हमसे मान ही जाती  || 

सबके साथी, हम अकेले, एक आकांक्षा अपनी भी थी |
हाथों में एक हाथ होता, एक सर होता इस काँधे भी |
चांदनी जैसे नील गगन में, रहती वो भी इस मन में |
सागर के संग जैसे लहरें, और दीये संग जैसे बाती |
इस सूने आंगन में भी एक छम छम सी पायल इठलाती |
किन्तु यह सब तो तब होता गर वो हमसे मान ही जाती ||

क्षमा प्रार्थी जो कहा उनको कि चाहे 'कोई' भी होती |
'किसी' को भी हमने तो बस 'हाँ' ही कर दी होती |
कहत क्षितिज! ऐ नादाँ, गर नादानी न कर दी होती |
ना सिर्फ मेरी, आज तेरी भी ज़िन्दगी अलग ही होती ||