मेरा और नफरत का हुआ सामना ,
मैंने बड़ी नफरत से देख उसे बोला,ऐ नफरत मुझे नफरत है तुझसे |
अंजाम ये कि इस नफरत से भी नफरत है ||
मैं चाहूँ तो भी ये नफरत नहीं मिटती,
मिटाने वाले मिट जाते हैं ये नहीं घटती |
नफरत, जो दिलों के बीच इमारत है ,
नफरत, जो अज सबसे बड़ी तिजारत है,
क्या उसकी इतनी बड़ी रियासत है ?
मुझे नफरत को जहाँ से मिटाना है,
इसकी रियासत को गिराना है,
ये नफरत मिट जाए खुदा से यही इबादत है,
नफरत ना हो तो ये जहाँ ही जन्नत है |
अपने लिए इतनी नफरत देख नफरत बोली,
" जीवन तो दिया नहीं जाता किसी को,
गम तो बांटे नहीं जाते किसी के,
आंसू तो पोंछे नहीं जाते किसी के,
ऐ क्षितिज! कैसी ये तेरी फितरत है !!
ये ना कह कि किसी से नफरत है,
कह हर उस चीज़ से मुहब्बत है,
जो इस कायनात में खुदा की कुदरत है,
और नफरत भी इस दुनिया में उसी की रहमत है || "
4 comments:
I like the second last stanza that is putting across the selfish nature of human!! good ... keep writing !! and updating ur blog!!
Insha Allah!!
ae tu is comedy ke jamane main kaisa dukhi kavi hai... kuchh pyar mohabbat ki misaale ya mashuka se nok jhok likha karo..yeh kya dahaiz, nafrat, gareebi, muflisi, barbaadiyo ki dastaan likh dete ho
he he.. abe kisi ko to ye sab bhi likhna padega na :D
crack be!!
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